जिन्दगी की कुछ अनकही बाँतें, अनकही मुलाकातें... (Part - 9)
स्त्री होना , आसान नहीं... जिन्दगी की लकीरों में अपने मैं क्या खूब तकदीर लिखवा कर आई हूँ की स्त्री होना आसान नहीं हैं! हर बेटी , बहु , माँ , बहन , सास , इत्यादि सर्वप्रथम एक स्त्री ही कहलाती हैं। जिन्दगी की उच – नीच को संभालो , घर परिवार को संभालो , और फिर भी लोगो से ये सुनो की आखिर तुमने किया ही क्या हैं ? मेरा जवाब ये ही रहेगा की उसकी जगह लेकर देखो तो पता चले उसने क्या – क्या किया हैं! ये तानों का सिलसिला मैंने अपने ही घर में सुना हैं | माँ ! मेरी जिन्दगी का हिस्सा नहीं मेरी जिन्दगी हैं। ये बात इस लिए बता रही क्योंकि जानती हूँ की अगर वो ना होती तो मैं यहाँ नहीं होती। माँ का परिवार बहुत बड़ा था। चार बहनें और तीन भाई। लेकिन माँ कहती हैं की नाना – नानी नें सब बच्चों को बड़े प्यार से बड़ा किया। खास करके बिटियों को , माँ की पढ़ाई के बाद उनकी शादी हो गई। मानो जिन्दगी का पूरा रूख बदल गया था। शादी के कुछ दिनों के बाद तक सब ठीक था। लेकिन उसके बाद उनके ससुराल के द्वारा अच्छा व्यवहार नहीं रहा। पर क्या करती एक स्त्री हैं , तो हर एक बात को सहने की आदत सी हो गई थी। पर फिर भी माँ ने उफ़ ...