जिन्दगी की कुछ अनकही बाँतें, अनकही मुलाकातें... (Part - 4)

स्वार्थ’ – ‘स्व’ का अर्थ

जिन्‍दगी के हर मोड़ पर कुछ नया सिखा कुछ नया जाना। कभी - कभी कुछ ऐसे मोड़ पर हम ऐसे लोगो से मिलते हैं जिनका साथ पाकर ऐसा लगता हैं मानो उनसे कभी दूर नहीं जाना। हमेशा अपने साथअपने पास पाने की चाह होती हैंचाहे वो कोई भी हो। लेकिन कही ना कहीकभी किसी मोड़ पर हम उनसे नाराज़ हो जाते हैंझगड़े हो जाते हैंऔर इस तरह उस रिश्ते मे दूरियाँ आना शुरू हो जाती हैं। जो सबसे करिब हो वो ही दूर हो जाए तो दर्द बहुत होता हैं। लेकिन कभी सोचा हैं की इसकी क्या वजह हैंगलती किसकी हैंक्या इस तरह की लड़ाई या झगड़े से दूर होना सही हैंक्या हमने एक – दूसरे की बात को सुना या समझाआखिर क्या?

हर किसी को ऐसा लगता हैं या तो में सही हूँ या तो गलत! अगर सामने वाला इन्‍सान सच में आपकी फिक्र करता हैं और आप उनकी फिक्र करते हैं तो दोनो ही सूझ – बूझ और समझदारी से उस रिश्ते को कायम रख पाएँगे। लेकिन अगर कोई एक ही रिश्ते को बचाने की कोशिश कर रहा हैं और दूसरा व्यक्ति उसे हलके में ले रहा हैं तो बेहतर हैं की अलग होना सही हैं। क्योकि ताली एक हाथ से नही बजती हैं।

किसी भी रिश्ते को दो हाथों का सहारा जरूरी होता हैं। काफी कुछ इन सब बाँतों से समझने लगी थी मैं जब मेरी जिन्‍दगी में ये मोड़ आया। बहुत कोशिश की संभलने की और अपने आपको संभालने कीपर ना हो सका! वक्त लगा भिखरे हुए रिश्तों से बहार आने में लेकिन कोशिश कभी नहि छोड़ी। फिर दिमाग में ख्याल आया की क्यों ना अपने स्वार्थ की खोज करु।

स्वार्थ – यानि ‘स्व’ का अर्थ! मैं कौन हूँक्या अस्तित्व हैं मेराक्या मायने रखता हैं मेरे लिएक्या मुझे खुद से प्यार हैं या नहींइन सवालों ने मानो मेरे स्वाभिमान को हिला कर रख दिया और सोचने पर मजबूर कर दिया की मेरा वजूद क्या हैं?

फिर क्या! मैं निकल पड़ी ‘स्व’ के अर्थ को पहचानने के लिए। शुरूआत की खुद को खुश रखने सेहसने – खिलखिलाने से। अपनी पसंद का करने से लेकर सब कुछ जो मैं करना चाहती थी। छोड़ दी वो आशा या उम्मीद की अब कोई मुझे संभालेगा। अपने जिन्‍दगी के अकेलेपन को दिल खोलकर अपना चुकी थी मैं! अब उस अकेलेपन ने मानो एक नई सीखनया जूनून भर दिया था मुझमें। महसूस हुआ की अपने दम पर खड़ी भी हो सकती हूँचल भी सकती हूँ और अपनी उड़ान भर भी सकती हूँ। और अगर कभी कोई मेरे पँख को छेड़े भी तो मुड़ कर मुँह तोड़ जवाब भी दे सकती हूँ। और इन सब के साथ ज़मीन से भी जुड़ी रहना चाहती हूँ। ताकि अगर कभी गिर भी जाऊँ तो चोट कम लगे और ज़खम भी जल्दी भर जाए।

अपने दिल में भरी हर एक मुराद को पूरा करके आज खुश हूँ। फिर धीरे से ही सहीअकेलेपन की आदत ने खुद को बेहतर बनाना सिखाया। रिश्ते कोई भी होबुरे कभी नही होते बस हर किसी का एक अलग ढंग हैं उसे संभालने का! अगर रिश्ते बहुत अच्छे से चल रहे हैं तो उसे खूबसूरती से चलने दो और रिश्ते में बंधे दोनों इन्‍सान उसे शिद्द्त से निभाओ। लेकिन अगर अकेले हो तो अपने अकेलेपन में हताश होने के जगह अपने आप को अकेले संभालने की कोशिश करोशुरूआत में मुश्किल हैं लेकिन यकीनन अंत शानदार ही होगा और अपने से प्यार करना सिखोक्योंकि जब तक खुद की कदर नही करोगेकोई तुम्हारी कदर नहि करेगा।

“ जिन्‍दगी बहुत ही खूबसूरत हैं जनाब,

इसे दिल खोल कर जियोक्योंकि ये जिन्‍दगी एक ही बार मिली हैं।“

और अपनी सोच में बदलाव किजिये!

क्योंकि,

“जिन्‍दगी काँट नी नहीं हैं,

जिन्‍दगी जिनी हैं।“

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