जिन्दगी की कुछ अनकही बाँतें, अनकही मुलाकातें... (Part - 5)
दूसरा मौका
बचपन में हर कोई अपने
दिल में आई हुई बात को ज़ुबान पर ले ही आते थे। चाहे वो कोई सुनी – सुनाई बात हो या
फिर कुछ और! मेरे ही बचपन की बात करूँ तो माँ ने मुझे एक डॉक्टर सेट लाकर दिया था खेलने
के लिए। और उसे खेलते – खेलते हमेशा कहाँ करती थी की मैं डॉक्टर बनूँगी। माँ भी बड़े
प्यार से उस बात के लिए हामी भरती और कहती, “हाँ बन जाना डॉक्टर।“
वक्त बिता, धीरे – धीरे समझ बड़ी और फिर बात पता चली की डॉक्टरी
की पढ़ाई में बहुत महेनत चाहिए। उसमें मुझे कोई हर्ज़ नही था लेकिन उसके साथ – साथ ये
बात भी पता चली की डॉक्टरी की पढ़ाई के लिए बहुत खर्चा था। परिवार की परिस्थितियों से
वाकिफ़ थी मैं! इसलिए डॉक्टरी पढ़ने की ज़िद्द भी ना की। फिर बचे मेरे सामने दो ऑप्शन
- कोमर्स या फिर आर्टस। आर्टस पढ़ने की इच्छा नहीं थी इसलिए कोमर्स पढ़ने का निर्णय लिया।
लेकिन कोमर्स लेकर भी क्या करूँ? तो सोचा की सी.ए. कर लेती हूँ, लेकिन
उसमें भी मैं संतुष्ट नहीं थी क्योंकि सोच कर बैठी थी की ज्यादा मेरी पढ़ाई को लेकर
या उसके खर्चो को लेकर अपने माता – पिता को परेशान नहीं करूँगी। उसी दौरान मैंने जाना
सिविल सर्विसीस की परिक्षा के बारे में जहाँ सबसे ज्यादा पर पढ़ाई ध्यान देना होता हैं
और अच्छे से पढ़कर परिक्षा में पास हो गए तो आई.ए.एस के पद पर बैठ सकते हैं। फिर क्या
था, देशभक्त हूँ और अगर इस तरह से देश की सेवा में अपना योगदान करुँ
तो ये मेरे लिए गर्व की बात हैं। सोच लिया और मन में ठान लिया की
अब आई.ए.एस ही बनना हैं।
दसवी के बाद कोमर्स लिया और बाहरवी के बाद बी.कोम में एडमिशन
ले लिया। बी.कोम के साथ – साथ आई.ए.एस की पढ़ाई भी शुरू की। लेकिन किस्मत को कुछ और
ही मंजूर था। अपनी कॉलेज की पढ़ाई शुरू होने के बाद घर में तनाव का माहोल छाने लगा था।
आर्थिक रूप से इतने सक्षम भी नही थे इसलिए फिर मैंने निर्णय लिया की मैं जॉब करूँगी।
सेमेस्टर – २ की शुरूआत में ही मुझे जॉब मिल गई। सुबह कॉलेज फिर कॉलेज से आते ही जॉब।
इन सब के बीच सिविल सर्विसीस की परिक्षा की तैयारी पूरी तरह से छूट ही गई। जॉब करना
जरूरी हो गया था वरना घर कैसे चलता? पिता का इस बात को लेकर कोई सहारा
नही था। इसलिए जो भी कुछ करना था वो अपने दम पर करना था। घर संभालने से लेकर हर एक
चीज़ मुझे खुद ही करनी थी। मैं सिर्फ बी.कोम पढ़कर
अपनी पढ़ाई छोड़ना नही चाहती थी। इसलिए अपने आई.ए.एस बनने के सपने को दिल के किसी कोने
में दबाकर जैसे सब चल रहा था उसे चलने दे रही थी।
मैंने जिन्दगी में
कुछ करने की ठानी थी। अपनी माँ की बेटी नहीं बेटा बनकर दिखाना चाहती थी। इसलिए हार
नहीं मानी। जिन्दगी ने फिर एक बार मौका दिया सोचने का कुछ कर दिखाने का। अपने अंदर
के हुनर को तराशने का! फिर मैंने मिडिया के बारे जानने की शुरूआत की। ज्यादा पता नही था इसलिए इसके बारे बहुत ही सोच समझकर जानने की कोशिश की। पूरा
वक्त लिया इस बारे में सोचने के लिए की मुझे किस ओर मुड़ना हैं। कोई घर – परिवार में
ऐसा नही था जिन्हें इस फिल्ड़ के बारे में अच्छे से पता हो। इस लिए खुद की महेनत से, दिल और दिमाग से बहुत सोच – समझकर ये फैसला किया की अब मिडिया
और जर्नालिज्म में आगे बढ़ना हैं चाहे कुछ भी हो जाए।
भगवान ने मुझे दूसरी बार मौका दिया की मैं अपनी पढ़ाई ना छोड़कर अपने नए सपनों की उड़ान
भरू।
बी.कोम खतम करने के
बाद ही मैं इसमें आगे पढ सकती थी इसलिए दो साल राह देखी। तब तक जिन्दगी के दोनों
पहियों को संभलकर चला रही थी। कॉलेज के बाद पार्ट टाइम में एक प्राइवेट कोम्प्युटर क्लास
में पढ़ाने जाती थी और आज भी पढ़ा रही हूँ। साल २०२० में अपना बी.कोम खतम किया अपने बलबुते
पे। पढ़ाई से लेकर घर खर्च से लेकर सब कुछ संभालते हुए फिर ऐडमिशन लिया अपने ही शहर
के कॉलेज में जहाँ अब में Post Graduation
Diploma in Mass Communication and Journalism पढ़ रही हूँ। अभी भी मैं आत्मनिर्भर ही हूँ। पढ़ाई
के साथ – साथ घर संभालना और जॉब भी करना जारी हैं।
अपनी जिन्दगी के इस अंक को बयाँ करने के पीछे एक ही मक्सद हैं
कि मेरे जैसे काफ़ी लोग होंगे जिन्होंने अपने सपनो की उड़ान नही भरी होगी किसी ना किसी
कारण से। लेकिन अगर आप में कुछ कर गुजरने का जूनन हैं तो यकीन मानिये जिन्दगी आपको
दूसरा मौका जरूर देती हैं। अपने अंदर की आग को कभी बुझने मत देना क्योंकि ये आग ही
जिन्दगी जिने का ज़रिया बन जाती हैं। सय्यम रखे और सही वक्त
का इन्तजार करे। वो सही वक्त कब हैं और उसका किस प्रकार से सदुपयोग करना हैं ये आप
मुझसे बेहतर जानते। बस, हिम्मत मत हारियेगा!
"जिन्दगी के मोड़ पर कुछ अनकही फरियादे लेकर चलती थी,
उसी जिन्दगी ने जब दूसरा मौका दिया तो,
मुक्कमल सा लगने लगा हैं जहान,
फिर से भरी हैं सपनो की नई उड़ान।"
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