जिन्दगी की कुछ अनकही बाँतें, अनकही मुलाकातें... (Part - 8)

विश्वास हैं अब खुद पर...

जिन्‍दगी के पहेलू से कुछ अनगिनत बातों में से आज चुना हैं एक ऐसी बात को मानों शायद इसके बिना जिन्‍दगी सोची नहीं जा सकती। हर रिश्ते का वजूद ३ बातों से जुड़ा हुआ हैं – सच्चाई, समझदारी और विश्वास। हर रिश्ते में सच्चाई होना बहुत जरूरी हैं। उसी रिश्तें में एक दूसरे को संभालने की समझदारी भी होनी चाहिए, और एक दूसरे पर विश्वास की कभी धोखा नही देंगे। कभी – कभी हम सच्चाई और समझदारी को नजरंदाज कर देते हैं, लेकिन अगर विश्वास को नजरंदाज कर दिया तो रिश्तों में प्यार कम दूरियाँ ज्यादा आ जाती हैं।

जिन्‍दगी के कुछ रिश्तों में मैंने कई बार अपना विश्वास खोया हैं। कई रिश्तों को तोड़ा हैं। क्या करती? आखिर मेरे सीने में भी दिल हैं। और जब ये सब अपने सबसे करिबी इन्‍सान से हो ना तो दर्द बहुत होता हैं। और जब वो आपको जन्म देने वाला पिता हो तो सबसे ज्यादा! बेटी का लगाव पिता से सबसे ज्यादा होता हैं। पर नसीब में वो प्यार और लगाव नहीं था। विश्वास टूट चुका था इस रिश्ते से। अपना सबकुछ खो चुकी थी। वजूद, आत्मसम्मान, प्यार और वो रिश्ता भी।

इस रिश्ते के टूटने के साथ मैं पूरी तरह से टूट कर बिखर गई थी। अपने आपको खो चुकी थी। लोगों पर विश्वास करने से डरती थी। पता नहीं फिर कोई आके और मुझे कितना रुलाएगा! संभलने की कोशिश करी जा रही थी। बहुत कोशिश की खुद उठ सकू। नही लेना था मुझे किसी का सहारा। इसलिए कोशिश जारी रखी। पर इस बार खड़ी नही हो पा रही थी।

दिल और दिमाग से ठान लिया था की कभी किसी पर विश्वास नही करूँगी। लेकिन मेरी ये बात गलत साबित हुई। पाँचों ऊँगलियाँ एक जैसी नहीं होती वैसे ही हर इन्‍सान और हर वक्त एक जैसा नही होता। जिन्‍दगी में जब कोई अलविदा कह जाता हैं ना तो किसी का आना भी तय होता हैं। मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। कोई आया मेरी जिन्‍दगी, में एक अच्छा दोस्त! यकीन मानें नही था उन पर भी विश्वास लेकिन फिर भी बातचीत हो जाया करती थी। उस इन्‍सान से मिलकर ऐसा लगा की हाँ! दुनिया में आज भी अच्छे लोग रहते हैं। बात करके अच्छा लग रहा था पर विश्वास अब तक नही किया था। उस इन्‍सान के आने के बाद उन्होंने मुझे ये बताया की जिन्‍दगी किसी के लिए नही रुकती और मैं भी ना रुकू। आगे बढ़ना मुश्किल सा था। पर बढ़ना तो था। इसलिए शुरुआत की अपने आप को वापस जोड़ने की। जोड़ तो रही थी अपने आप को पर उसमें पुराने टूटे हुए निशान अभी तक दिख रहे थे। तो सोचा की अपने आप को नए सिरे से शुरू किया जाए। किसी और से पहेले खुद पर विश्वास करना सिखाया उस दोस्तने! किसी और को प्यार करने से पहले खुद से प्यार करना सिखाया उस दोस्त ने!

वक्त बिता अपने आप को बनाने में लग गई। बहुत वक्त दिया खुदको पर अब शायद पिछले से ज्यादा बेहतर बनी हूँ। खुद से प्यार और खुद पर विश्वास अब सबसे ज्यादा हैं। लोगो को लगता हैं खुदगर्ज हूँ, तो लगने दो। उसी दोस्त ने एक गाने के बोल गाए थे की, “कुछ तो लोग कहेंगे, लोगो का काम हैं कहना, छोड़ो बेकार की बाँतों में कई बीत ना जाए रैना!”

एहसास हुआ हैं की मेरा वजूद मेरा आत्मसम्मान कई खो नही गया था। बस दिल के किसी कोने में बैठकर राह देख रहा था कि कब मैं उसे हर्षौल्लास से के साथ वापिस जगाऊ। जिन्‍दगी के इस मोड़ पर खुद को देखकर ये ही ख्याल आता हैं की बहुत रो लिए, बहुत बार अपने दिल को तौड़ लिए। अब खुद से सबसे ज्यादा प्यार और विश्वास खुद पर सबसे पहेले करना हैं। अब जिन्‍दगी में आँधी आए या तुफ़ान मजबूती से आगे बढ़ना हैं। आज भी उस दोस्त का साथ हैं और विश्वास भी! और हमेशा अच्छे इन्‍सानों पर विश्वास करना चाहिए क्योंकि हर कोई गलत नहीं होता। शुक्रिया दोस्त! मुझे ये बात समझाने के लिए की मैं बहुत स्पेशियल हूँ, इस बात पर मुझे विश्वास दिलाने के लिए कि, मैं कुछ भी कर सकती हूँ।

"रिश्तों की डोर बँधी विश्वास पर हैं,

टूट जाए तो सब बिखरा सा जाता हैं,

इसलिए खुद पर विश्वास करो,

ताकि कभी ऐसा दिन आए तो खुद को बहेतर तरिके से संभाल सको।"

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