जिन्दगी की कुछ अनकही बाँतें, अनकही मुलाकातें... (Part - 6)

 हादसे

आज कल लोगो के जिन्‍दगी इतनी तेज हो गई हैं मानो वक्त से भी आगे उन्हें दोड़ना हो। और इसी चक्कर में कई बार बहुत बड़े हादसे हो जाते हैं। क्योंकि ज्यादा स्पीड होगी तो हादसा होगा ही। कुछ हादसे जिन्‍दगी भर का सबक दे जाते हैं और कुछ हादसे शायद जिन्‍दगी ही ले जाते हैं। अगर कभी जिन्‍दगी में हादसे हुए हो तो उससे सिखो ताकि ये दुबारा ना हो। और अपनी स्पीड को थोड़ा कन्‍ट्रोल में रखो। अपनी जिन्‍दगी का भी और गाड़ी का भी। हादसो का मतलब ये नहीं की कोई ऐक्सिडेन्‍ट ही हुआ हो। हादसे उन्हें भी कह सकते हैं जिसकी वजह से जिन्‍दगी में  ठोकर भी लगी हो। जिंदगी से सबक मिला हो की वापीस ना दोहराना।

बात हैं तबकी जब मैं छ: - सात साल की थी। दशहरा का दिन था दादा – दादी के घर पूरा परिवार साथ था। माँ और बाकी की औरतें रसोई घर में खाना बना रही थी। पिताजी और घर के बुजुर्ग बहार आंगन में बैठकर बाते कर रहे थे। हम बच्चें वही आंगन में खेल रहे थे। उसी जगह पर लोखंड़ की पाइप लटकी हुई थी। वो इस लिए लगाई गई थी की हम बच्चे उसपे लटकर कसरत करे ताकि हमारा थोड़ा कद बढ़े। मैं बहुत छोटी लेकिन मैंने जिद्द की मुझे भी लटकना हैं। फिर दादाजी ने मुझे उठाया और कहा कि दोंनो हाथों से कसके पकड़ना। मैंने भी जोश – जोश में पकड़ लिया और उनसे कहाँ की अब वो मुझे छोड़ दे। तो उन्होंने मुझे छोड़ दिया। और उनके छोड़ते ही मेरा हाथ फिसला और मुँह के बल में नीचे जमीन पर गिर गई। मुँह के बल गिरने से मुँह से लेकर गले के भाग की पुरी चमड़ी निकल गई और मास दिखने लगा था। गिरते ही पहेली चीख में अवाज माँ को लगाई। माँ दोड़ती हुई रसोई घर से आई। मुझे देख आँखे भर आई और आँसु मानों रुकने के नाम नहीं ले रहे थे। पिताजी ने बहार जाकर रिक्षा वाले को बुला लाए। इस दौरान वहाँ मेरे परिवार के किसी ने भी मेरे करीब आकर नही देखा ना ही मुझे संभालने की कोशिश की। मैंने इस हालत में अपने परिवारवालों को पुकारने की कोशिश की लेकिन कोई ना ही मुझे संभाल रहा था ना ही मेरी रोती हुई माँ को। रिक्षा के आने पर माँ और पिता ने खुद हि मुझे अपनी गोद में उठाया और रिक्षा में बिठाया। माँ और पिता दोनों के कपड़े पूरी तरह मेरे खून से लिपटे हुए थे। तब तक माँ की कोशिश जारी रखी थी और हल्दी लगाई रखी थी पर खून रुकने का नाम नहीं ले रहा था। मेरी ये हालत को देखकर माँ को चक्कर आने लगे थे। अस्पताल पहुँचते ही माँ को एक तरफ़ संभालना पड़ रहा था। मैं अपनी हालत भूल कर माँ की हालत देखकर रो पड़ी। उन्हें एक तरफ बिठाया, पानी दिया और फिर डॉक्टर मुझे ड्रेसींग के लिए अंदर लेकर गए। डॉक्टर ने टांके नही लगाए और कुछ दवाई और क्रिम से ही मेरे खून को रोक दिया और पूरे चेहरे पर पट्टी लगा दी। माँ को मुझे देखकर बेहतर लगा और वो भी थोड़ी संभल गई। पर डॉक्टर ने कह दिया था की एक हफ्ते मैं बात नहीं कर सकती और खाने में सिर्फ लिक्विड़ ही पिना हैं। तुरंत हि मुझे डिस्चार्ज मिल गया था पर मुझे उस परिवार के पास नहीं अपने घर जाना था।

माँ से इशारो में जैसे तैसे करके अपने घर जाने की जिद्द की। माँ मान गई। उस वक्त घर आने के रास्ते, मैं रोती ही रही इस वजह से नहीं की मुझे चोट लगी हुई थी। वो ज़खम तो भर जाएंगे, पर जो चोट उस छ: की बच्ची के दिल पर लगे थे वो आज भी नही भरे हैं। पूरा परिवार वहाँ था लेकिन ना होने के बराबर था। उसके बाद भी किसीने ये नहीं पुछा माँ से के मैं कैसी हूँ। उस छोटी सी बच्ची के दिल पर क्या बिती हैं कोई नही समझ सकता। परिवार साथ होते हैं तो कहते हैं सारी मुश्किलों से बहार निकला जा सकता हैं। और यहाँ ये परिवार था जिसे शायद मेरे होने या ना होने से कोई फर्क नहीं पड़ता था। सिर्फ मेरी माँ ही थी और आज भी हैं जिसने मुझे पिता से लेकर परिवार के हर एक सदस्य का प्यार देनी की कोशिश की हैं और आज भी उनकी कोशिश रुकी नहीं हैं। बाकीयों का पता नहीं पर मैंने अपनी माँ मे पूरा जहाँन देख लिया और शायद इसीलिए मुझे अब परिवार की कमी महसूस नहीं होती हैं। क्योंकि मेरी माँ में ही अब पूरा परिवार हैं।

इस हादसे ने बहुत बड़ा सबक दिया था मुझे जो आज भी मैं नही भूली हूँ कि मेरे गिरने पर भी मुझे मेरी माँ ही संभालेगी। और किसीसे कभी कोई अपेक्षा मत रखना, कभी – कभी वो भी सिर्फ तमाशा ही देखने के लिए खड़े होते हैं या फिर आज के ट्रेंड की तरह फ़ोटो या विडियो बनाके सोशियल मिडिया में शेर करने के लिए। शायद अपने फोलोवर्स बढ़ाने के लिए। क्योंकि वो सब शायद अपनी इन्‍सानियत कही ना कही छोड़ आए हैं।

इस किस्से को पढ़ने वाले हर एक इन्‍सान से मेरी हाथ जोड़कर प्रार्थना हैं की कृपया आपके सामने ऐसे कोई भी हादसे हो छोटे हो या बड़े, घाव दिल के हो या शरीर के, दोस्त हो या दुश्मन, अपना हो पराया, महेरबानी करके उसकी मदद किजीएगा। उसके दिल से निकली दुआ कभी खाली नही जाएगी।

"जिन्‍दगी में रिश्तों को ढूँढ़ने चली थी,

हादसो ने रिश्तों का पता बता दिया,

हादसे ने चोट दिल पर दी या शरीर पर,

पता नहीं,

पर उस हादसे ने अपनो के रिश्तों का नकाब उठा दिया।"

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