जिन्दगी की कुछ अनकही बाँतें, अनकही मुलाकातें... (Part - 2)

वक्त

जिन्‍दगी मे हर किसी के लिए बहुत मायने रखता हो तो वो है वक्त! वक्त, शब्द हैं सिर्फ ढ़ाई अक्षर का लेकिन जिन्‍दगी का सबसे बड़ा सबक ये ही सिखा के जाता हैं। किसीने क्या खूब कहा हैं, “वक्त तो अमूल्य है ही लेकिन उससे अधिक अमूल्य ये है की वो वक्त आप किसके साथ बिताते हो।“

हर कोई अपनी यादों में अच्छे वक्त को समेटकर रखना पसंद करते है, ताकि जब उन्हें वो पल याद आए तो एक प्यारी सी मुस्कान चेहरे पर आ जाए। मैंने अपनी जिन्‍दगी मे कुछ ऐसे लम्हों को समेटे रखा हैं जिसमें कुछ अच्छी और कुछ बुरी यादों का मिश्रण हैं। लेकिन वो भी सही हैं, जिन्‍दगी मे कुछ खट्टा तो कुछ मिठ्ठा होना ही चाहिए। आखिरकार हर स्वाद और हर याद का पता होना चाहिए।

बचपन के दिनों को लेकर बात हो या स्कूल के दिनों को लेकर, हर एक पल न जाने क्यूँ एक सीख छोड जाती थी। कुछ बाते तब समझ में आई कुछ अब। पता चला इस वक्त से की कैसे छुपाए जाते हैं अपने आँसु, कैसे ला सकते हैं अपने चहेरे पर एक झूठी सी मुस्कान। कहा जाता हैं कि दिल मे कोई बात हो जो हमे परेशान करती हो तो किसीके सामने बयाँ करना चाहिए, लेकिन पता ना था की बताने पर खुद का ही मजाक बन जाएगा।

जिन्‍दगी के पन्नो पर कितना वक्त बचा हैं किसी को नहीं पता, तो फिर सोचा क्यूँ ना वक्त को ही अपना हमदर्द बना ले। फायदा इससे ये हुआ की आज अपनो से दोस्ती ना सही अपने वक्त से दोस्ती निभाई जा रही हैं। क्योकि दोस्त की व्याख्या की गई हैं कि वो हमेशा सुख – दु:ख का साथी होता हैं। इसी लिए वक्त को ही साथी बना लिया।

भावनाओं में बेहकर दोष हमेशा वक्त को देने से बेहतर हैं उसी से कुछ सिखे। जिन्‍दगी में हार – जीत, सुख – दु:ख ये सब तो एक बहाना हैं, भगवान देखना चाहता हैं की किस बंदे को अपने वक्त को आज़माना आता हैं। हर घड़ी यही सोचते रहना की मेरे साथ ही क्यूँ ? इसकी जगह ये सोचने में क्या हर्ज हैं की मे क्यूँ नहीं? विचार का दृष्टीकोण बदल कर देखिए, वक्त के साथ जिन्‍दगी भी सुहानी सी लगने लगेगी।

वक्त को अपना शिक्षक बना लिजिए, जिन्‍दगी के काफ़ी अच्छे पहेलूओ से मुलाकात कराएगा। आँसुओं की किमत भी वक्त ही बताएगा। कुछ अनकही सी लगती हैं ये बातें, लेकीन सिखा यहीं हैं जिन्‍दगी से की अगर गिरे जमीन पर खुद हो तो खुद उठना सिखो और अगर उठकर भी चल ना पाए तो खुद को ही अपनी लाठी समझो!

निराशा और हताशा को बाँधों किसी पोटली में और फेक आओ कहीं! क्योंकि नया वक्त और नई शुरुआत इन्‍तजार कर रही हैं आपका, कुछ खट्टी – मिठ्ठी यादों के साथ, कुछ नए उतार – चढ़ाव के साथ। अगर लम्हा सुहाना बनाना हैं तो अपने आपको जि‌न्दादिल बनना हैं, कभी खुशी को तो कभी गम को अपना साथी बनाना हैं। हर कदम को दिल खोलकर जिना हैं और अगर किसी वक्त अपनी गलतियों की वजह से कुछ सहना पड़े तो अपने आपको और मजबूत बनाना हैं।

"आज ठाना हैं,

जिन्दगी के बचे हुए वक्त को अपना बनाना हैं,

आज तक गुलाम थे वक्त के,

अब वक्त को अपना गुलज़ार बनाना हैं।"

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